बिहार के कामगार अब बनें करोड़पति, स्टार्टअप से बदल रही है जिंदगी, लोगों को दे रहे हैं रोजगार

बिहारियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा था कोरोना महामारी के दौरान घर लौटे बिहारियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा था। बिहार में रोजगार की कमी के कारण लोगों को मजबूरन या फिर तो विदेशों या फिर दूसरे राज्य में जाकर काम करना पड़ता है। इसी दौरान चनपटिया बाजार समिति में लौटे […]

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11 months ago - 19:15
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बिहार के कामगार अब बनें करोड़पति, स्टार्टअप से बदल रही है जिंदगी, लोगों को दे रहे हैं रोजगार
बिहार के कामगार अब बनें करोड़पति, स्टार्टअप से बदल रही है जिंदगी, लोगों को दे रहे हैं रोजगार

बिहारियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा था

कोरोना महामारी के दौरान घर लौटे बिहारियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा था। बिहार में रोजगार की कमी के कारण लोगों को मजबूरन या फिर तो विदेशों या फिर दूसरे राज्य में जाकर काम करना पड़ता है। इसी दौरान चनपटिया बाजार समिति में लौटे कामगारों को क्वारेंटाइन रखा गया था। तभी से यहां की जिंदगी में बदलाव आनी शुरू हो गई। यहां से कई स्टार्टअप शुरू हुए।

 

जो लोग बाहर से लौटे थे अब यहां पर करोड़ों कमा रहे हैं

बताते चलें कि जो लोग बाहर से लौटे थे अब यहां पर करोड़ों कमा रहे हैं। नंद किशोर कुशवाहा भी उन्ही कामगारों में से थे जिन्हें महामारी के दौरान वापस घर लौटना पड़ा था। लेकिन अब वह कंपनी ‘चंपारण क्रिएशन’ के मालिक हैं। कम्पनी में साड़ी में कढ़ाई का काम होता है और सालाना टर्नओवर दो करोड़ है।

जिंदगी नहीं थी आसान 

नंदकिशोर भले ही आज करोड़ों की कंपनी खड़ी कर चुके हैं लेकिन उनकी जिंदगी हमेशा से ऐसी नहीं थी। उनकी जिंदगी से बहुत कुछ सकारात्मक सीखने को मिलता है। वर्ष 2000 में वह सूरत चले गए थे क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। बड़ी मुश्किल से वहां काम मिला और वह 20 साल से सूरत में हैंडलूम इंडस्ट्री की मशीनें बनाने का काम करते थे।

कंपनी ने नहीं दिया था साथ

वह उस कंपनी में लगातार 20 सालों से काम कर रहे थे। कम्पनी ने कोरोना के मुश्किल समय में कंपनी ने उनका साथ नहीं दिया और उनकी नौकरी छूट गई तो उन्हें बहुत धक्का लगा। तभी उन्होंने नवपरिवर्तन योजना के तहत बैंक से 25 लाख का लोन लिया, लेकिन यह काफी मुश्किल था क्योंकि बैकअप सपोर्ट कुछ नहीं था। लेकिन उन्होंने मेहनत से काम किया और कम्पनी को इस मुकाम तक पहुंचाया।

8 साल की उम्र में भाग गए थे घर से 

वहीं इसी इलाके में आनंद कुमार की स्टील की बर्तन बनाने की फैक्ट्री भी है। जो 8 साल की उम्र में ही घर से भागकर दिल्ली मजदूरी करने चले गए थे। वहां पर बर्तन बनाने का काम सीखा था। मालिक से झगड़ा होने के बाद उन्होंने भी अपनी फैक्ट्री खोली और मेहनत के दम पर आगे बढ़ाया। लोग हंसते थे लेकिन उन्होंने लोगों की नकारात्मकता को कभी खुदपर हावी नहीं होने दिया।

 

 

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